Thursday, March 3, 2011

A PROBLEM COMES IN A NEW FACE"TRAFFIC"

आज का विषय हैं ट्राफ्फिक., 
                     दैनिक  ट्राफ्फिक   बदती ही जा रही है .क्यों आसान सवाल है आबादी बढ रही है इसलिए  
 तो इसे कण्ट्रोल कैसे करे सिम्पल सड़के चौड़ी  करे  नियमो  का पालन करे .पालन कौन करवाएगा  ? 
क्या पुलिस.? नहीं यह हम आम जनता की जिमेदारी हैं . सडको पर सुरक्षित  चलने की  भाई हम तो सुरक्षित   चलते है पर दूसरा कोई ठोक दे फिर ? उसे पुलिस सुधारे क्यों  भाई नौकरी इसलिए ही तो  दी जाती हैं . ट्राफ्फिक पुलिस की .पुलिस द्वारा बनाये गए नियम सब के लिए सामान हो किसी वर्ग विशेष के लिए दंड या छूट प्रादान नहीं की सकती .नियमो  के मायने सिर्फ कमाई तक सिमित न हो.मेरा विशवास है कड़ाई से उठाया हुआ कदम काम जरूर करेगा .खैर अब सडको की बात करते है देश का विकास  सडको पर निर्भर करता है जैसी सड़के होगी वैसा  देश होगा . सड़क को सड़क ही रहने दो सजावती सामानों से लेस मत करो सड़क के बिच में या साइड में कुछ आये तो सख्ती से हटवाओ  .सड़के चौड़ी   होगी आवागमन अच्छा होगा.
 60 फीट चौड़ी  सड़क पर क्या डिवाईडर  बनना जरूरी है ? यदि हां तो इतनी चौड़ी की सड़क की चौड़ाई ही कम हो जाए .क्या  डिवाईडर पर पौधे  लगाना  जरूरी है पौधे का ध्यान तो कोई रखता नहीं सिर्फ डिवाईडर पर मिटटी रहती है 
मेरे ख्याल से लोग साइड पर चलना जानते  ही होगे .फिर आती है सड़के दस बार सड़क बन्नने में जो लागत आती होगी उतनी लागत में एक बार सड़क क्योँ नहीं बनती है .  सड़को पर गड्ढे होना मौत का कारण .माफ़ करना दोस्तों मेरा ज्ञान कम है दिल की बात है दिल में आता लिख लेता हूँ.मेरा किसी  एक पर ध्यान केन्द्रित नहीं है खराबी  की जड़ हमारे अंदर है हमे सुधरना  होगा और सुधारना होगा .और जो न सुधरे उसे फेकना होगा इतना ही करना दोस्तों 
फेकने में हम उस्ताद है फर्क सिर्फ सही  चीज़ उखाड़ फेकना है.

Saturday, February 26, 2011

raato ke badshah

आज बिलासपुर शहर  में दिन हो या रात गुनाह बदती जा रही हैं इस्सका कारन किसे मानते है आप ? प्रशाशन को या किसे .... खैर  गुनाह करने वाले लोग   हमारे भाई बंधु ही है शायद भैया के मन से पुलिस का डर निकल गया  है या फिर भाई लोग सब स्थिति से ऊपर है उनके लिए कोई शाशन या प्रशासन बाधा नहीं बन सकती या तो उन्हें किसी प्रकार का सरचन प्राप्त है किसी दबंगई का . खैर मसला कुछ भी हो क्रीइम तो बाद रहा है कुछ हद तक तो में सरकारी नीतिया को दोष दूंगा और कुछेक के प्लान को .पहेले मेरे सहर में रातो को मै आसानी से घूमता था किसी काम से पहले रातो को लगभग बारह बजे तक दुकाने खुली रहती थी लोग घूमते थे दुकानदारी चलती थी गरीबो का पेट भरता था .शाययद भैया लोग को गुनाह करने मै तकलीफ होती थी .क्योंकि लोग जागते थे यदि कोई गुनाह करे तो रातो को घुमने वाले सरफिरे ही खुद फैसला कर देते थे .धीरे धीरे दुकाने जल्द बंद होने लगी लोग जल्दी घर जाने लगे  दुकानदारी जल्द समाप्त होने लगी गरीबो की आय  सिमट गयी.रोड सुनसान हो गयी भाइयो को मौका मिला .खैर हमे क्या करना हमतो घर जल्दी चले जाते है सुन्नी सड़क छोड़ जाते है भाइयो को कोई फर्क नहीं पड़ता वे अपना काम कर जाते है.डंडे के डर से हम जल्दी घर चले जाते है.

Tuesday, January 18, 2011

my friend.

आज  मैं आपको अपने  दोस्त के बारे बतलाता  हूँ उस  मित्र के बारे में मेरी सोच एक पहेली की तरह हैं जो आज तक उन्सुलाझी हूईं हैं. इस  शबदो के सग्रह को पढ़कर आप मेरी कुछ मदद कर सकते है
दोस्त को देखते ही मुझे भीतर ही भीतर एक खुसी मिलती है.वह हस्ता है तो भी और गुस्सा है तो भी .उसकी एक झलक पाने के लिए में दूर से आता हूँ. यदि वह नहीं मिलता तो दुखी  नहीं होता बल्कि एक हिम्मत पैदा होती है दुसरे दिन मिलने की
.मेरा दोस्त की सोच अकल्प्निये  है वह क्या करता है मेरे समझ के परे है लेकिन वह मुझे  क्या कहता है मेरे समझ में आसानी से आजाता है और क्या कहूं  दोस्त के बारे में एक लाइन है " हरी अनंत ,अनंत कथ्यआये ."
             यदि आपको मेरी बाते समझ में आये तो  पलिस कमेंट्स करे ..